अथ नेतामहाभारतम्
मंगलाचरणम्
नतेन शिरसा वन्दे शंकरं भूतभावनम्।
रेवातटे सर्व सुलभं कंकरं नर्मदेश्वरम्।।१
मैं उन भूतभावन भगवान शंकर की साष्टांग वंदना करता हूँ, जो यहाँ नर्मदा के किनारे प्रत्येक कंकर में नर्मदेश्वर के रूप में हमेशा सर्व साधारण को सुलभ हैं।
ह्रासं भ्रष्टचरित्राणां उत्थानं राष्ट्रवादिनाम्।
शेषनं खैरनारादीन् रक्षयस्व महेश्वर।।२
हे भगवान! भ्रष्टाचारियों के ह्रास के लिये एवं राष्ट्रवादियों के उत्थान के लिये,आप शेषन और खेरनार जैसे लोगों की रक्षा क रें।
होशंगाबादे पुरे रम्ये सेठानी घट्टउत्तमे।
विद्वासं कविमपृच्छन् ते श्रोतारस्सुबुद्धयः।।३
परम रम्य होशंगाबाद नगर में सेठानी घाट एक उत्तम स्थान है।वहाँ कथा श्रवण हेतु आये अनेक बुद्धिमान श्रोताओं ने एक दिन कवि से पूछा।
यत्र तत्र च सर्वत्र कां कथां श्रुणुमो वयम्।
कीदृक्कांग्रेस संघर्षः कथयस्वाति विस्तरम्।।४
हे कवि ! आजकल यत्र तत्र सर्वत्र कांग्रेस पार्टी के अन्तर्कलह की चर्चा ही सुनने में आ रही है। वह कलह किस प्रकार की है? कृपया विस्तार पूर्वक कहने की कृपा करें।
अयं विचार संघर्षो विवादो वा धनस्य च।
स्पर्धा वाधिपत्यस्य श्रोतुमिच्छाम हे कवे।।५
क्या यह विचारों का संघर्ष है या कोई धन सम्पत्ति का विवाद है? या कि फिर आधिपत्य की लड़ाई है? हे कवि महाराज ! हम विस्तार से सुनना चाहते हैं।
कविरुवाच
काँग्रेसस्येयं गाथा कल्याणी सर्व दुःखहा।
परमाति रहस्यपूर्णा कथा पुण्य फल प्रदा।।६
कवि बोले कि हे श्रोतागण! काँग्रेस पार्टी की यह परम रहस्य पूर्ण कथा समस्त दुःखों का नाश करने वाली है और समस्त जगत का कल्याण करने वाली एवं सभी प्रकार के अच्छे बुरे फल देने वाली भी है।
किंत्विदानीमियं गाथा भूत प्रेत भयंकरा।
पठनीया श्रवणीया च एकान्ते शनैः शनैः।।७
किन्तु इस समय यह कथा भुत प्रेतादि के द्वारा भय उत्पन्न करने वाली है, इसलिये उसे एकान्त में और धीरे धीरे पढ़ना सुनना चाहिये।
युष्माकमाग्रहेण च कथयामि सुधीगणाः।
प्रणमामि सर्व दुष्टेभ्यः नर्मदे देवि पातुमाम्।।८
हे सुधीगण ! आप लोगों के अत्यधिक आग्रह के कारण ही मैं यह कथा कह रहा हूँ । माँ नर्मदा से प्रार्थना करता हूँ कि समस्त दुष्टात्माओं से आपकी और मेरी रक्षा करें।
अथ प्रथमोध्यायः
एकदा दिल्ली तीर्थे नेतारः अर्जुनादयः।
पपृच्छुर्मन्त्रिणः सर्वे रावं काँग्रेसाग्रजम्।।९
एक बार राजनैतिक तीर्थ नई दिल्ली में अर्जुनादि नेतागण एकत्रित हुए। कुछ विधान सभाओं की पराजय से घबराये हुए ये नेता अपने अग्रज श्री नरसिंहाराव जी से पूछने लगे।
मन्त्रिणः ऊचुः
हे समस्योदासीन ! असन्तुष्टारे हे सखे!
जनकोदारार्थ नीत्याश्च अल्प गूढ़ार्थ भाषक।।१०
हे अल्प किन्तु गूढ़ार्थ भाषण करने वाले , समस्याओं के प्रति उदासीन रहने वाले और नई आर्थिक नीति के प्रणेता ,असन्तुष्टों के विनाशक आपको नमस्कार है।
अखण्डं राजपाखण्डं खण्डं खण्डं कृतं त्वया।
विख्यातो हर्षदे काण्डे प्रकरणे शर्करादयः।।११
अखण्ड रूप से चल रहे राजनैतिक पाखण्ड को खण्ड खण्ड कर देने वाले , हे अपराजित शत्रु ! हर्षद काण्ड में विज्ञापित शर्करादि प्रकरणों में आपकी ख्याति देश विदेश में फैल गई है।
हे हे न्यूनाति श्वेतकेशी द्वयासन विराजिते।
नेतृत्वे तव या नौका मग्ना राजनीति सागरे।।१२
हे कम और श्वेत केश धारी,दो दो आसनों पर विराजमान भद्र! चौदह भाषाएँ जानते हुए भी हमेशा चुप रहने वाले हे मौन साधक ! आपके नेतृत्व में हमारी जीर्न शीर्ण नौका राजनीति के सागर में डूबती हुई दिखाई देती है।
किं कारणं दुर्दशां प्राप्तं सर्व प्राचीनतं दलम्।
कर्नाटकान्ध्र राज्येषु कीदृशीं दुर्गतिं गतिम्।।१३
कृपा करके बताइये कि क्या कारण है जो हमारे एक सौ सात वर्ष पुराने दल की कर्नाटक आन्ध्र आदि प्रदेशों में इस तरह दुर्गति हुई है?
श्री राव उवाच
रे रे ! रुष्टाः असन्तुष्टाः अधीराश्च विपत्तिषु।
व्यवस्थाहं करिष्यामि न चिन्तात्यधिकं कुरुत।।१४
श्री राव बोले कि हे लघु विपत्तियों में धैर्य त्यागने वाले असन्तुष्ट जनों ! आप लोगों की पीड़ा को मैं भली भाँति जानता हूँ।आपके क्रोध युक्त प्रश्नों का समाधान अवश्य जानता हूँ। आप अपने मन को शान्त करें और धैर्य पूर्वक सुनें।
अर्जुन उवाच
कथा कथा वयोवृद्ध ! व्यवस्थां त्वं करिष्यसि।
ईदृशीं जर्जरावस्थां मोक्षाय मम वचः श्रुणु।।१५
राव जी के इस प्रकार वचन सुनकर अर्जुन सिंह बोले कि हे वयोवृद्ध !जिस प्रकार आप चार वर्षों से व्यवस्था करते आ रहे हैं,उसी से हमारा धैर्य पूर्णतः टूट चुका है।आपका दो आसनों पर जमा रहना मुझे हमेशा से खटकता रहा है।इस शुभ कार्य के लिये इससे उत्तम अवसर कब प्राप्त होगा ? इसलिये हे भद्र! मेरे निश्चय को सुनिये।
मूञ्च मुञ्च क्षणे भद्र मह्यं एकासनं त्यज।
ददामि त्यागपत्रं त्वां षड सूत्रात्मकं न तु।।१६
हे भद्र! अपनी दो आसनों में से कोई एक आसन मेरे लिये छोड़ दीजिये अन्यथा मेरे छः सूत्रीय त्यागपत्र को स्वीकार कीजिये।
श्री राव उवाच
गच्छ गच्छ असन्तुष्ट सततो विघ्नकारक।
निलम्बितं करिष्यामि कुरु किं कर्त्तुमिच्छसि।।१७
श्री राव ने कहा कि हे निरन्तर विघ्न उत्पन्न करने वाले असन्तुष्ट! तुम अवश्य जाओ, पर ऐसे नहीं ,मैं तुम्हें निलम्बित करूँगा।फिर तुम्हारी जो इच्छा हो सो कर लेना।
कविरुवाच
निष्काषितार्जुनः शीघ्रं दर्शयन् दस जनपथम्।
राजधानीं परित्यज्य प्रस्थितो चुरहटं पुरम्।।१८
कवि कहता है कि इस प्रकार पार्टी से निष्काषित होने के बाद अर्जुन दस जनपथ की ओर टकटकी लगाये राजधानी को त्याग कर चुरहट की ओर प्रस्थान कर गये।
इति श्री नेतामहाभारत पुराणे विद्रोह खण्डे अर्जुन निष्काषन नाम प्रथमोध्यायः।